माता अंजनी से हनुमान के जन्म की कथा तो हम सब ने सुनी है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं की माता अंजनी किसी समय इंद्र के दरबार में पुंजिकस्थला नामक एक अप्सरा हुआ करती थी।

ऐसा माना जाता है की एक बार पुजिंकास्थला ने तपस्या करते एक तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी। गुस्से में आकर ऋषि ने पुंजिकस्थला को श्राप दे दिया कि जा तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा, ऋषि के श्राप को सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि से क्षमा याचना मांगने लगी, तब ऋषि ने दया दिखाई और कहा कि तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा। तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगों-युगों तक अमर हो जाएगा, इस तरह अंजनि को वीर पुत्र का आशीर्वाद मिला।

इस शाप के बाद पुंजिकस्थला धरती पर चली गई और वहां एक शिकारन के रूप में रहने लगी। वहीं उनकी मुलाकात केसरी से हुई और दोनों में प्रेम हो गया। केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया पर संतान सुख से वंचित थे। तब मतंग ऋषि की आज्ञा से अंजना ने तप किया।

तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया, कि तुम्हारे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा। पवनदेव की कृपा से पुंजिकस्थला को एक पुत्र मिला जिसका नाम आंजनेय रखा गया जो आगे चलकर बजरंग बलि और हनुमान के नाम से प्रसिद्ध हुए।