हिन्दू धर्म के अनुसार नरक वह स्थान है जहां पापी आत्मा को भोगने के लिए भेजा जाता है। दंड भोगने के पश्चात् पापी आत्मा का उसके कर्मानुसार उनका दूसरी योनियों में जन्म होता है।

ऐसा माना जाता है की स्वर्ग धरती के ऊपर है और नरक धरती के नीचे यानी पाताल लोक में है। इस लोक को अधोलोक यानि नीचे का लोक भी कहा जाता है। तो आइये जानते हैं की आखिर पृथ्वी के निचे कुल कितने लोक हैं।

स्वर्ग और नरक

जहाँ कुछ लोगों का मानना है की स्वर्ग या नरक की बातें सिर्फ एक कल्पना है तो वहीँ कुछ लोग स्वर्ग या नरक को सत्य भी मानते हैं।

जो सत्य मानते हैं उनके अनुसार मति से ही गति तय होती है कि आप अधोलोक में गिरेंगे या फिर ऊर्ध्व लोक यानि स्वर्ग जायेंगे।

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार गति दो प्रकार की होती है अगति और गति

अगति के चार प्रकार है-

  1. क्षिणोदर्क
  2. भूमोदर्क
  3. अगति
  4. दुर्गति।…

और गति में जीव को चार में से किसी एक लोक में जाना पड़ता है। ये लोक क्रमशः

  1. ब्रह्मलोक
  2. देवलोक
  3. पितृलोक
  4. नर्कलोक हैं

जीव-जंतु अपने कर्मों के अनुसार ही उक्त लोकों में जाता है।

 

 

मृत्यु के बाद मिलने वाला मार्ग

हिन्दू पुराणों के अनुसार जब भी कोई इंसान मरता है या आत्मा शरीर को त्यागकर अपनी आगे की यात्रा प्रारंभ करती है तो इस दौरान उसे तीन तरह के मार्ग मिलते हैं।

ऐसा माना जाता है की मृत्यु के बाद आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है।

ये तीन मार्ग हैं-

  • अर्चि मार्ग - आत्मा को ब्रह्मलोक और देवलोक की यात्रा पर ले जाता है।
  • धूम मार्ग - आत्मा को पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है
  • उत्पत्ति-विनाश मार्ग - नरक की यात्रा पर।

परन्तु अब सवाल यह उठता है कि वो कौन है जो इस उत्पति विनाश मार्ग पर चलकर नरक जाता है।

आस्तिक से आस्तिक, नास्तिक से नास्तिक,ज्ञानी से ज्ञानी और बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति को भी नरक का सामना करना पड़ सकता है।

क्योंकि ज्ञान, विचार आदि से तय नहीं होता है कि आप अच्छे हैं या बुरे। आपकी अच्छाई आपके नैतिक बल में छिपी होती है। आपकी अच्छाई यम और नियम का पालन करने में निहित है। अच्छे लोगों में चेतना बढती है तब वे देवताओं की नजर में श्रेष्ठ बन जाते हैं।

लाखों लोगों के सामने अच्छे होने से भी अच्छा है स्वयं के सामने अच्छा होना। अर्थात जैसी गति, वैसी मति। अच्छा कार्य करने और अच्छा भाव एवं विचार करने से अच्छी गति मिलती है। निरंतर बुरी भावना में रहने वाला व्यक्ति स्वर्ग नहीं जा सकता।

 

कौन जाता है नर्क ?

धर्म, देवता और पितरों का अपमान करने वाले, तामसिक भोजन करने वाले, पापी, मूर्छित, क्रोधी, कामी और अधोगामी गति के व्यक्ति नरक में जाते हैं।

पापी आत्मा जीते जी तो नरक झेलती ही है, मरने के बाद भी उसके पाप के अनुसार उसे अलग-अलग नरक में एक अवधि तक रहना पड़ता है।निरंतर क्रोध में रहना, कलह करना, सदा दूसरों को धोखा देने का सोचते रहना, शराब पीना, मांस भक्षण करना, दूसरों की स्वतंत्रता का हनन करना और पाप करने के बारे में सोचते रहने से मनुष्य का चित्त खराब होकर नीचे के लोक में गति करने लगता है और मरने के बाद वह स्वत: ही नरक में गिर जाता है।

गरुड़ पुराण के अनुसार नरक

गरुड़ पुराण का नाम किसने नहीं सुना? इस पुराण में नरक, नरकासुर और नरक चतुर्दशी, नरक पूर्णिमा का वर्णन मिलता है। नरकस्था अथवा नरक नदी वैतरणी को कहते हैं।

नरक चतुर्दशी के दिन तेल से मालिश कर स्नान करना चाहिए। इसी तिथि को यम का तर्पण किया जाता है, जो पिता के रहते हुए भी किया जा सकता है। गरुड़ पुराण में पाताल के नीचे नरकों की स्तिथि बताई गई है जिनमें पापी जीव गिराए जाते हैं।

यों तो नरकों की संख्या पचपन करोड़ है; किन्तु उनमें रौरव से लेकर कुम्भीपाकम तक इक्कीस प्रधान हैं।

महाभारत में राजा परीक्षित जब नरक के बारे में शुकदेवजी से प्रश्न पूछते हैं तो वे कहते हैं कि राजन! ये नरक त्रिलोक के भीतर ही है तथा दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे जल के ऊपर स्थित है। उस लोग में सूर्य के पुत्र पितृराज भगवान यम है वे अपने सेवकों के सहित रहते हैं। तथा भगवान की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए, अपने दूतों द्वारा वहां लाए हुए मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों के अनुसार पाप का फल दंड देते हैं।

 

 

श्रीमद्भागवत के अनुसार नरकों के नाम

  1. तामिस्त्र
  2. अंधसिस्त्र
  3. रौरव
  4. महारौरव
  5. कुम्भीपाक
  6. कालसूत्र
  7. आसिपंवन
  8. सकूरमुख
  9. अंधकूप
  10. मिभोजन
  11. संदेश
  12. तप्तसूर्मि
  13. वज्रकंटकशल्मली
  14. वैतरणी
  15. पुयोद
  16. प्राणारोध
  17. विशसन
  18. लालभक्ष
  19. सारमेयादन
  20. अवीचि
  21. अय:पान

इसके अलावा…. 22.क्षरकर्दम, 23.रक्षोगणभोजन, 24.शूलप्रोत, 25.दंदशूक, 26.अवनिरोधन, 27.पर्यावर्तन और 28.सूचीमुख ये सात मिलाकर कुल 28 तरह के नरक माने गए हैं जो सभी धरती पर ही बताए जाते हैं। कुछ पुराणों में नरक की संख्या 36 तक भी बतायी गयी है।

परन्तु कुछ लोगों का ये भी मानना है की स्वर्ग या नरक हमारे भीतर ही है। कोई भी ऐसा नहीं है जो मनुष्य के किये की सजा या पुरस्कार देता हो। मनुष्य अपने कर्मों से ही स्वर्ग या नरक की स्थिति को भोगता है। यदि वह बुरे कर्म करेगा को बुरी जगह और बुरी परिस्थिति में होगा और अच्छे कर्म करेगा तो अच्छी जगह और परिस्थिति में होगा। कुछ हद तक यह बात सही मानी जा सकती है, लेकिन इसके सही होने के पीछे के विज्ञान या मनोविज्ञान को समझना होगा। पुराणों अनुसार कैलाश के उपर स्वर्ग और नीचे नरक व पाताल लोक है। संस्कृत शब्द स्वर्ग को मेरु पर्वत के ऊपर के लोकों हेतु प्रयुक्त किया है।

पुराणों के अनुसार जीवात्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म पाती है। अर्थात नीचे से ऊपर उठने की इस प्रक्रिया को ही ऊर्ध्वगति कहते हैं।अगर मनुष्य अपने पाप कर्मों के द्वारा फिर से नीचे गिरने लगता है तो उसे अधोगति कहते हैं। अधोगति में गिरना ही नरक में गिरना होता है। इसलिए अपने अंदर की चेतना और नैतिकता जगाये रखें। अगर आप इस जन्म मरण के चक्र से छूट कर मोक्ष की प्राप्ति करना चाहते हैं।